Saturday, December 27, 2008

अब और नहीं.....!!!


मेरे दिल की यही फरियाद “ के अब और नहीं “
चाहतें हो गईं बर्बाद “ के अब और नहीं “

कोशिशें मैंने बहोत कीं तुम्हें पाने की मगर
मर गए सब मेरे जज़्बात “ के अब और नहीं “

मैनें मांगा था तुम्हें फूल समझकर लेकिन
आप कांटों की हैं बरसात “ के अब और नहीं “

ज़िंदगी तुमको पुकारेगी हर एक रोज़ मगर
खत्म कर दूंगा मुलाक़ात “ के अब और नहीं “


ज़ुल्म सहते हुए इग्यारह महीने गुज़रे
इतनी काफ़ी हैं इनायात “ के अब और नहीं “

याद कर के तुम्हें तन्हाई में बेचैनी में
हमने काटी हैं कई रात “ के अब और नहीं “

अपनी दुनिया में बहुत खुश  सा है तन्हा मसरूर
बस यहीं तक था तेरा साथ “ के अब और नहीं “

मसरूर अब्बास

Thursday, December 25, 2008

कितना मुश्किल है....!!!


बहके से दिल को समझाना कितना मुश्किल है
इन नज़रों की प्यास बुझाना कितना मुश्किल है

अपनी लकीरों में उलझा है वक्त का हर एक जोगी
बिगड़ी सी तक़दीर बनाना कितना मुश्किल है

उनसे आंख मिले तो दिल के टुकड़े होते हैं
और उन्हीं से आंख चुराना कितना मुश्किल है

सोचा था कह दूंगा इक दिन दिल की सारी बातें
उनको दिल के राज़ बताना कितना मु्श्किल है

हंसते हैं मेरी हालत पर दुश्मन भी और वो भी
उनको अपनी जान बनाना कितना मुश्किल है

उसका वो नूरानी चेहरा और अदाएँ कमसिन
चाहत को परवान चढ़ाना कितना मुश्किल है

ना मैं कोई संत कबीरा ना मैं कोई साधू
खुद को एक इंसान बनाना कितना मुश्किल है

चाहत मेरे पांव पड़े है, आदत रस्ता रोके है
उलझी उलझन को सुलझाना कितना मुश्किल है

रब कर दे आसान तो मैं भी वारे जाउं उसपर
वरना अपने प्यार को पाना कितना मुश्किल है

मसरूर अब्बास

Friday, December 5, 2008

एक रोज़ का एहसास जो कुछ देख के हुआ....


न जाने क्यों मेरी खुशियां उदास बैठी हैं
कहूं मैं कैसे उन्हें कितना बेक़रार हूं मैं

वो अपनी उंगलियां रक्खे हुए हैं गालों पर
मुझे ये डर है कि उनका गुनाहगार हूं मैं

मैं छुपके देखता रहता हूं हरकतें उनकी
हर एक शोख़ अदाओं का राज़दार हूं मैं

वो लंबी ज़ुल्फ, बड़ी आंख, खुशनुमा चेहरा
इन्ही की चाह में बेहका सा इंतज़ार हूं में

मैं किस तरह से कहूं उनसे हाल-ए-दिल अपना
मैं किस तरह से कहूं कितना अश्कबार हूं मैं

खुशी की छांव में महंका हुआ सा फूल है वो
ग़मों से उजड़े गुलिस्तां की एक बाहर हूं में

वो मेरा इश्क है रहता है मेरी सासों में
पर उसके दिल में धड़कता हुआ सा प्यार हूं मैं

मसरुर अब्बास

Monday, December 1, 2008

पाकिस्तान को एक शायर का मशवरा !



पाकिस्तान के लोगों में पाकिस्तान की हकूमत और पाकिस्तानी मीडिया के ज़रिए ये बात फैलाई जाती है कि हिन्दुस्तान में जो मुसलमान हैं उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है...उनपर ग़मों के पहाड़ ढाए जाते हैं...इस बात को मद्देनज़र रखते हुए एक हिन्दुस्तानी शायर ने पाकिस्तान की मीडिया, पाकिस्तान की हुकूमत और पाकिस्तान की आवाम को मुखातिब करते हुए ये नज़्म कही... जो आपकी पेश-ए-खिदमत है !


तुमने कश्मीर के जलते हुए घर देखे हैं
नैज़ा-ए-हिंद पे लटके हुए सर देखे हैं
अपने घर का तु्म्हें माहौल दिखाई न दिया
अपने कूचों का तुम्हें शोर सुनाई न दिया
अपनी बस्ती की तबाही नहीं देखी तुमने
उन फिज़ाओं की सियाही नहीं देखी तुमने
मस्जिदों में भी जहां क़त्ल किए जाते हैं
भाइयों के भी जहां खून पिए जाते हैं
लूट लेता है जहां भाई बहन की इस्मत
और पामाल जहां होती है मां की अज़मत
एक मुद्दत से मुहाजिर का लहू बहता है
अब भी सड़कों पे मुसाफिर का लहू बहता है
कौन कहता है मुसलमानों के ग़मख़्वार हो तुम
दुश्मन-ए-अम्न हो इस्लाम के ग़द्दार दो तुम
तुमको कश्मीर के मज़लूमों से हमदर्दी नहीं
किसी बेवा किसी मासूम से हमदर्दी नहीं
तुममें हमदर्दी का जज़्बा जो ज़रा भी होता
तो करांची में कोई जिस्म न ज़ख्मी होता
लाश के ढ़ेर पे बुनियाद-ए-हुकूमत न रखो
अब भी वक्त है नापाक इरादों से बचो
मशवरा ये है के पहले वहीं इमदाद करो
और करांची के गली कूचों को आबाद करो
जब वहां प्यार के सूरज का उजाला हो जाए
और हर शख्स तुम्हें चाहने वाला हो जाए
फिर तुम्हें हक़ है किसी पर भी इनायत करना
फिर तुम्हें हक़ है किसी से भी मुहब्बत करना
अपनी धरती पे अगर ज़ुल्मों सितम कम न किया
तुमने घरती पे जो हम सबको पुर्नम न किया
चैन से तुम तो कभी भी नहीं सो पाओगे
अपनी भड़काई हुई आग में जल जाओगे
वक्त एक रोज़ तुम्हारा भी सुकूं लूटेगा
सर पे तुम लोगों के भी क़हर-ए-खुदा टूटेगा..

जय हिन्द