Thursday, December 25, 2008

कितना मुश्किल है....!!!


बहके से दिल को समझाना कितना मुश्किल है
इन नज़रों की प्यास बुझाना कितना मुश्किल है

अपनी लकीरों में उलझा है वक्त का हर एक जोगी
बिगड़ी सी तक़दीर बनाना कितना मुश्किल है

उनसे आंख मिले तो दिल के टुकड़े होते हैं
और उन्हीं से आंख चुराना कितना मुश्किल है

सोचा था कह दूंगा इक दिन दिल की सारी बातें
उनको दिल के राज़ बताना कितना मु्श्किल है

हंसते हैं मेरी हालत पर दुश्मन भी और वो भी
उनको अपनी जान बनाना कितना मुश्किल है

उसका वो नूरानी चेहरा और अदाएँ कमसिन
चाहत को परवान चढ़ाना कितना मुश्किल है

ना मैं कोई संत कबीरा ना मैं कोई साधू
खुद को एक इंसान बनाना कितना मुश्किल है

चाहत मेरे पांव पड़े है, आदत रस्ता रोके है
उलझी उलझन को सुलझाना कितना मुश्किल है

रब कर दे आसान तो मैं भी वारे जाउं उसपर
वरना अपने प्यार को पाना कितना मुश्किल है

मसरूर अब्बास

3 comments:

"अर्श" said...

bahot khub...........

hem pandey said...

आपकी यह पंक्ति सौ टका सही है -
खुद को एक इंसान बनाना कितना मुश्किल है

Unknown said...

Looking very cute!
;)

Nothing is difficult for you,

SiNdBaAd tHe SaIlOr.........