Friday, February 6, 2009

रहना तू, है जैसा तू, थोड़ा सा दर्द तू, थोड़ा सुकून तू..........!!!


कयों अजब सी हलचल बेचैन करती है
आहट सुनी नहीं के उसके आने का एहसास होने लगता है..
मायूसियों से घिरा दिन उसे सोचते ही खूबसूरत हो जाता है
रात की चादर भी उसका नाम सुनते ही महक सी जाती है

उसे सबकुछ पता है...या यूं कहें कि शायद मुझसे ज़्यादा अब वो मुझे जानती है..
शरमाती है...थोड़ा इतराती भी है और परेशान भी करती है
पास आती है तो खुद को संभालना मुश्किल होता है
दूर जाती है तो दिल को संभालना मुश्किल होता है
दिल के अंदर बैठा शरारती बच्चा हर बार उसे पाने की ज़िद करता है...
और हर बार उसे ये कह के तसल्ली देता हूं कि चांद पाने के लिए नहीं...देखने के लिए है
हम दोनों ने ख्वाब संजोए हैं... हम दोनों ने सपने देखे हैं... फर्क बस इतना है कि उसने अपनी आंखों से सपने देखे हैं, मैने उसकी आंखों से सपने देखे हैं।
जो वो दे सकती है वो मेरे लिए बहोत थोड़ा है,
और जो ज़्यादा है वो मैं मांग नहीं सकता..
उलझने बढ़ती हैं, मैं घुटता हूं, हंसता हूं, बिखरता हूं और फिर खुद को समेटता हूं
अगले दिन फिर एक नई शुरूआत और एक नई ज़िंदगी
टूटकर बिखरना, और बिखर के फिर से जुटने का जो मज़ा है शायद अब मैं वो महसूस कर सकता हूं..
वो आसमान है..खुली हवा है और वो आज़ाद खुशबू है...
उसे समेटकर, संजोकर, संभालकर रखना मेरे लिए मुश्किल है...

हह.. खैर मेरा जुनून अब ख़ामोश है... इसी साल मैं जवान भी हुआ हूं... और इसी साल मैंने ख्वाहिशों को समझाने का हुनर भी सीख लिया...
शुक्रिया... उसे जो मेरा कभी था ही नहीं...!!!

मसरूर अब्बास

Tuesday, February 3, 2009

मेरा मेजाज़ तो बचपन से आशिकाना था...!!!


तू शम्मा है मैं तेरे दिल का परवाना रहूंगा
मैं मर के भी तेरी चाहत का अफ़साना रहूंगा

तेरी तस्वीर हमसे पूछती है क्या करोगे
मैं कहता हूं मैं “दीवाना था दीवाना रहूंगा”

न छूने की तमन्ना थी न पाने का जुनूं था
अजब चाहत है ‘बेगाना था बेगाना रहूंगा’

यही कुदरत की मर्ज़ी है यही मेरा मुक़द्दर
मैं तुझको जान के भी तुझसे अंजाना रहूंगा

न हमदम हूं, न आशिक हूं न कोई दोस्त हूं मैं
मैं आवारा सा बादल था मैं आवारा
रहूंगा


मसरूर अब्बास

मुझे चांद चाहिए....!!!


हम तेरी निगाहों से दग़ा खा गए ज़ालिम
जाना था कहीं और कहां आ गए ज़ालिम

उस रात की गलती की सज़ा कौन भरेगा
जब होंट तेरे होंट से टकरा गए ज़ालिम

आगाज़-ए-मोहब्बत तो हसीनों से हसीं था
अंजाम मगर सोच के घबरा गए ज़ालिम

आंखों को तेरी देख के बैचैन हुए और
चेहरे को तेरे देख के शरमा गए ज़ालिम

चेहरे की हंसी और तेरी आंखो का काजल
हम अपने गुनाहों की सज़ा पा गए ज़ालिम

मुश्किल था बहोत मेरे लिए तुझसे बिछड़ना
पर तुझसे बिछड़ने की दुआ पा गए ज़ालिम


मसरूर अब्बास