Tuesday, February 3, 2009

मुझे चांद चाहिए....!!!


हम तेरी निगाहों से दग़ा खा गए ज़ालिम
जाना था कहीं और कहां आ गए ज़ालिम

उस रात की गलती की सज़ा कौन भरेगा
जब होंट तेरे होंट से टकरा गए ज़ालिम

आगाज़-ए-मोहब्बत तो हसीनों से हसीं था
अंजाम मगर सोच के घबरा गए ज़ालिम

आंखों को तेरी देख के बैचैन हुए और
चेहरे को तेरे देख के शरमा गए ज़ालिम

चेहरे की हंसी और तेरी आंखो का काजल
हम अपने गुनाहों की सज़ा पा गए ज़ालिम

मुश्किल था बहोत मेरे लिए तुझसे बिछड़ना
पर तुझसे बिछड़ने की दुआ पा गए ज़ालिम


मसरूर अब्बास

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