Tuesday, February 3, 2009

मेरा मेजाज़ तो बचपन से आशिकाना था...!!!


तू शम्मा है मैं तेरे दिल का परवाना रहूंगा
मैं मर के भी तेरी चाहत का अफ़साना रहूंगा

तेरी तस्वीर हमसे पूछती है क्या करोगे
मैं कहता हूं मैं “दीवाना था दीवाना रहूंगा”

न छूने की तमन्ना थी न पाने का जुनूं था
अजब चाहत है ‘बेगाना था बेगाना रहूंगा’

यही कुदरत की मर्ज़ी है यही मेरा मुक़द्दर
मैं तुझको जान के भी तुझसे अंजाना रहूंगा

न हमदम हूं, न आशिक हूं न कोई दोस्त हूं मैं
मैं आवारा सा बादल था मैं आवारा
रहूंगा


मसरूर अब्बास

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