कयों अजब सी हलचल बेचैन करती है
आहट सुनी नहीं के उसके आने का एहसास होने लगता है..
मायूसियों से घिरा दिन उसे सोचते ही खूबसूरत हो जाता है
रात की चादर भी उसका नाम सुनते ही महक सी जाती है
उसे सबकुछ पता है...या यूं कहें कि शायद मुझसे ज़्यादा अब वो मुझे जानती है..
शरमाती है...थोड़ा इतराती भी है और परेशान भी करती है
पास आती है तो खुद को संभालना मुश्किल होता है
दूर जाती है तो दिल को संभालना मुश्किल होता है
दिल के अंदर बैठा शरारती बच्चा हर बार उसे पाने की ज़िद करता है...
और हर बार उसे ये कह के तसल्ली देता हूं कि चांद पाने के लिए नहीं...देखने के लिए है
हम दोनों ने ख्वाब संजोए हैं... हम दोनों ने सपने देखे हैं... फर्क बस इतना है कि उसने अपनी आंखों से सपने देखे हैं, मैने उसकी आंखों से सपने देखे हैं।
जो वो दे सकती है वो मेरे लिए बहोत थोड़ा है,
और जो ज़्यादा है वो मैं मांग नहीं सकता..
उलझने बढ़ती हैं, मैं घुटता हूं, हंसता हूं, बिखरता हूं और फिर खुद को समेटता हूं
अगले दिन फिर एक नई शुरूआत और एक नई ज़िंदगी
टूटकर बिखरना, और बिखर के फिर से जुटने का जो मज़ा है शायद अब मैं वो महसूस कर सकता हूं..
वो आसमान है..खुली हवा है और वो आज़ाद खुशबू है...
उसे समेटकर, संजोकर, संभालकर रखना मेरे लिए मुश्किल है...
हह.. खैर मेरा जुनून अब ख़ामोश है... इसी साल मैं जवान भी हुआ हूं... और इसी साल मैंने ख्वाहिशों को समझाने का हुनर भी सीख लिया...
शुक्रिया... उसे जो मेरा कभी था ही नहीं...!!!
मसरूर अब्बास
आहट सुनी नहीं के उसके आने का एहसास होने लगता है..
मायूसियों से घिरा दिन उसे सोचते ही खूबसूरत हो जाता है
रात की चादर भी उसका नाम सुनते ही महक सी जाती है
उसे सबकुछ पता है...या यूं कहें कि शायद मुझसे ज़्यादा अब वो मुझे जानती है..
शरमाती है...थोड़ा इतराती भी है और परेशान भी करती है
पास आती है तो खुद को संभालना मुश्किल होता है
दूर जाती है तो दिल को संभालना मुश्किल होता है
दिल के अंदर बैठा शरारती बच्चा हर बार उसे पाने की ज़िद करता है...
और हर बार उसे ये कह के तसल्ली देता हूं कि चांद पाने के लिए नहीं...देखने के लिए है
हम दोनों ने ख्वाब संजोए हैं... हम दोनों ने सपने देखे हैं... फर्क बस इतना है कि उसने अपनी आंखों से सपने देखे हैं, मैने उसकी आंखों से सपने देखे हैं।
जो वो दे सकती है वो मेरे लिए बहोत थोड़ा है,
और जो ज़्यादा है वो मैं मांग नहीं सकता..
उलझने बढ़ती हैं, मैं घुटता हूं, हंसता हूं, बिखरता हूं और फिर खुद को समेटता हूं
अगले दिन फिर एक नई शुरूआत और एक नई ज़िंदगी
टूटकर बिखरना, और बिखर के फिर से जुटने का जो मज़ा है शायद अब मैं वो महसूस कर सकता हूं..
वो आसमान है..खुली हवा है और वो आज़ाद खुशबू है...
उसे समेटकर, संजोकर, संभालकर रखना मेरे लिए मुश्किल है...
हह.. खैर मेरा जुनून अब ख़ामोश है... इसी साल मैं जवान भी हुआ हूं... और इसी साल मैंने ख्वाहिशों को समझाने का हुनर भी सीख लिया...
शुक्रिया... उसे जो मेरा कभी था ही नहीं...!!!
मसरूर अब्बास
4 comments:
masroor tum itna acha kaise likh lete ho tumhare har lafz dil ko chu jate hai kuda kare tum hamesa aise he likhte raho.
masroor u r really very sweet. I had read ur bloggs tum itna sab kuch kaise likhte ho ki tumhara likha hua har ek akshar dil ko chu jata hai... god bless u dear n i wish dt ur wishes come true..!!
आपकी लेखनी की जितनी भी वाहवाही करें कम है। पर हमारा भी मन हुआ कि दो चार लाइन इसी बात पर लिख डालें यानि कि 'रहना तू,है जैसा तू,थोड़ा सा दर्द तू, थोड़ा सा सुकून तू।
हमसे किसी ने कहा था ....
दिल की आवाज को इजहार कहते हैं
झुकी निगाहों को प्यार कहते हैं
सिर्फ जताने का नाम इश्क नहीं
किसी की यादों में जीने को भी प्यार कहते हैं
dil se hare ho dil se hi jeete ho...
jo sunate ho dil ki wahi tum likhate ho...
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