Wednesday, March 25, 2009

मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग, और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा !!!


यूं हथेली पे तेरा नाम उभारा क्योंकर
तुझको नज़रों के समंदर में उतारा क्योंकर

जब तेरा नाम मेरे नाम से मिलता ही नहीं
इस तरह नाम तेरा लेके पुकारा क्योंकर

मेरी बस्ती के उजाले भी खफ़ा हैं मुझसे
चांद तारों को अंधेरों में उतारा क्योंकर

इन निगाहों को निगाहों की कोई फिक्र नहीं
फिर ये छुप छुप के निगाहों का इशारा क्योंकर

तेरी दुनिया में सवालों के सिवा कुछ भी नहीं
फिर ये रंगीन निगाहों का नज़ारा क्योंकर

लो चलो खत्म हुआ अपना बिछड़ना मिलना
जिनसे मिलना ही नहीं उनसे किनारा क्योंकर


मसरूर अब्बास

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