Saturday, January 3, 2009

जानम समझा करो...!!!


आज रूठे हो कल मनाओगे
कब तलक हमपे ज़ुल्म ढ़ाओगे

चांदनी रात ढ़ल गई आखिर
मेरे नज़दीक तुम कब आओगे

गुस्सा है आपका हसीन मगर
बिजलियां कब तलक गिराओगे

चुपके देखा किये हैं हम बरसों
फासले किस घड़ी मिटाओगे

आज ज़िंदा हूं तब भी मरता हूं
मर के भी तुम ही याद आओगे

हसरतें हर घड़ी ये पूछती हैं
तुम मुझे पास कब बुलाओगे

जब भी चाहत का नाम आएगा
मेरे होटों पे तुम ही आओगे

आज मेरी अदा पसंद नहीं
कल मेरे गीत गुनगुनाओगे

मैं हूं तेरा ‘नशा’ तू मेरी ग़ज़ल
बात समझोगे, मुस्कुराओगे !

मसरूर अब्बास

1 comment:

Unknown said...

You have grown as a wonderful poet in every possible way..

You are looking very cute!