Tuesday, January 13, 2009

मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन...!!!




दिल का अहवाल मैं लफ़्ज़ों में सुनाऊं कैसे
कल मेरे दिल पे जो गुज़री वो बताऊं कैसे

उंगलियां उनकी मेरे होटों से टकराई थीं
हाल दिल का जो हुआ उसको दिखाऊं कैसे

यूं तो बन जाता है बिगड़ा सा मुक़द्दर लेकिन
बात बिगड़ी है कुछ ऐसी के बनाऊं कैसे

उनको पाऊं तो मरूं और गवाऊं तो मरूं
ऐसी मुश्किल में उन्हें अपना बनाऊं कैसे

महफिलों में मुझे मिलने का कोई शौक नहीं
और तन्हाई में उनको मैं बुलाऊं कैसे

इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते यारों
मैं परेशान हूं चाहत को छुपाऊं कैसे

प्यार करने के भी आदाब हुआ करते हैं
नूर है उसको कलेजे से लगाऊं कैसे

ऐ खुदा तू ही बता दे मुझे अपनी मर्ज़ी
जिसको पाया ही नहीं उसको गंवाऊं कैसे


मसरूर अब्बास

1 comment:

Unknown said...

Wonderfully described the depth of the emotions,
This is the start of your illustrious carrier.

Congrats!