तू आसमां है चांद सितारों से पूछ ले
दुनिया के इन हसीन नज़ारों से पूछ ले
तुझको मैं रब कहूं तो बुरा मानते हैं लोग
तू मेरे दिल की बात इशारों से पूछ ले
तुझमें ही डूबने को बना है मेरा वजूद
दरिया से शर्म है तो किनारों से पूछ ले
डाली मेरे चमन की भी भीगी हुई सी है
सावन की हल्की हल्की फुहारों से पूछ ले
बेरंग सी हुई हैं फिज़ाएं तेरे बगैर
मेरा यकीं नहीं तो बहारों से पूछ ले
मसरूर अब्बास
2 comments:
wow........
sundar kavita....
dil ko bha gai...
"तुझमें ही डूबने को बना है मेरा वजूद
दरिया से शर्म है तो किनारों से पूछ ले"
बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति... हमेशा की तरह उम्दा तुकबंदी के साथ :)
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