मेरे महबूब बता कैसी इनायत की है
आसमां हो के भी ज़र्रे से मोहब्बत की है
आसमां हो के भी ज़र्रे से मोहब्बत की है
कल वो चाहत का मेरी खूब उड़ाएंगे मज़ाक
मेरी तकदीर ने ये कैसी शरारत की है
मैं बदल जाउं तो लगता है कि मर जाउंगा
मैं न बदलूं तो वो समझेंगे बग़ावत की है
लोग दुनिया में तो मिट्टी के खुदा पूजते हैं
मैंने ख्वाबों में भी बस उसकी इबादत की है
मसरुर
5 comments:
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति :)
Is It ur own ?
तारीफ़ के लिए अब शब्द नहीं। बस यही कहूंगी कि आप अपनी इन गज़लों का एक कलेक्शन बनवाइये और छपवाइये... मन को भा गई।
abbas u r to gud itna acha kaise likh lete ho kisi se inspire ho kya
kis ke liye likhte ho
HI TANU... सबसे पहले तो मेरे ब्लॉग को विज़िट करने का शुक्रिया :---)
ये सारी गज़ल सारी नज़्में किसी एक के लिए हैं...
TOP SECRET है इसलिए नाम नहीं बता सकता... :---)
वैसे इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते... सो एक रोज़ तुम्हें खुद पता चल जाएगा..
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