Friday, May 29, 2009

आसमां हो के भी ज़र्रे से मोहब्बत की है


मेरे महबूब बता कैसी इनायत की है
आसमां हो के भी ज़र्रे से मोहब्बत की है


कल वो चाहत का मेरी खूब उड़ाएंगे मज़ाक
मेरी तकदीर ने ये कैसी शरारत की है

मैं बदल जाउं तो लगता है कि मर जाउंगा
मैं न बदलूं तो वो समझेंगे बग़ावत की है

लोग दुनिया में तो मिट्टी के खुदा पूजते हैं
मैंने ख्वाबों में भी बस उसकी इबादत की है


मसरुर

5 comments:

Meenakshi Kandwal said...

बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति :)
Is It ur own ?

Meenakshi Kandwal said...

तारीफ़ के लिए अब शब्द नहीं। बस यही कहूंगी कि आप अपनी इन गज़लों का एक कलेक्शन बनवाइये और छपवाइये... मन को भा गई।

tanu said...

abbas u r to gud itna acha kaise likh lete ho kisi se inspire ho kya
kis ke liye likhte ho

'MASROOR' said...

HI TANU... सबसे पहले तो मेरे ब्लॉग को विज़िट करने का शुक्रिया :---)

ये सारी गज़ल सारी नज़्में किसी एक के लिए हैं...
TOP SECRET है इसलिए नाम नहीं बता सकता... :---)

वैसे इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते... सो एक रोज़ तुम्हें खुद पता चल जाएगा..

'MASROOR' said...
This comment has been removed by the author.