Saturday, August 5, 2017

अरे हुजूर! मुगलसराय मत बोलिए।


तो चलिए अब मेन्यू में थोड़ा बदलाव कर लीजिए। ये मुगलई कोरमा हटाकर दीनदयाल कोरमा कर लीजिए। बल्कि एक काम कीजिए! कोफ्तानिहारीमुर्ग मुसल्लमचाप इन सबके आगे एक्के बार में दीनदयाल लगा लीजिए। अब ज़ाएका कितना बढ़ेगा ई तो नहीं पता हां खाने वाले की अंतड़ियां तक देश भक्ति के इमोशन में डूब जाएंगीई बात की पूरी गैरेंटी है। ऊ का है ना ई छोटुआ का आइडिया है। छोटुआ रॉन्ग थोड़े ना होता है। ई पंडितों से बड़ा पंडित ज्ञानियों से बड़ा ज्ञानी है। नोट बंदी के समय छोटुआ कहे रहा कि ईकोनोमिस्ट का बतांगे कि ईका कितना फायदा होने वाला है। ई मर्ज़ नहीं मरीज खतम करने वाला डॉक्टर है। मगर आप अब भी नहीं मानेंगे कि ई रॉन्ग नंबर हैआपकी असली फिरकी ई ले रहा है और आप लुल्ल बने बैठै हैं।
वर्ना सोचिए दिल्ली से लेकर बिहार तकमुंबई से लेकर दरभंगा तक ऐसी कोई ट्रेन ना मिलेगी जिसकी चाय पीकर आप तर जाएं। जिसका खाना खाकर आप सेर हो जाएंग। अमा खाना तो छोड़िएइस बात की गैरेंटी दे सकता हूं कि दौड़ती ट्रेन पर मिलने वाला हर सामान शुद्धता की कसौटी के सबसे निचले मानकों पर भी खरा नहीं उतर पाएगा। चाय तो दूर आप ट्रेन पर मिलने वाला पानी तक पीने से पहले सौ बार सोचा करिए। टॉयलेट का दर्द तो खैर आपने भी खूब महसूस किया होगा। गंदगी से बजबजाते ट्रेनों के शौचालय पर छोटुआ की नजर नहीं जाती। हां तो विकास रथ पर सवार विकास पुरुष ने इस बार विकास की जो नई लकीर खींची है वो मुगल सराय से शुरु हुई है। एशिया के सबसे बड़े रेलवे मार्शलिंग यार्ड और भारतीय रेलवे का क्लास ए स्टेशन अब मुगलसराय नहीं पंडित दीन दयाल स्टेशन नाम से जाना जाएगा। ये वो स्टेशन है जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाता है। खैर भारत की ऐतिहासिक धरोहरों के साथ खिलवाड़ का ये जो नया चलन चला है ये तो तभी शुरु हो गया था जब अकबर रोड का नाम बदला गया था। अब इसकी आदत डाल लीजिए क्योंकि मुमकिन है आने वाले समय में आपको सिक्के पर छोटुआ की फोटू मिले और आपको उसे महात्मा कह रटाया जाए। इसमें दोष  छोटुआ का नहीं है..दोष तो आपकी लुल्ल बुद्धि का हैजो तब सो जाती है जब इसे जागना होता है।   

Wednesday, August 25, 2010

दोस्त के लिए नज़राना


ये अपने दर्द का इज़हार भला किस से करे
बहुत उदास है ये घर तुम्हारे जाने से


हमें भी रन्ज है ऐ दोस्त तेरे जाने का

कुछ एक ज़ख्म हरे हो गए पुराने से


खुदा से मांग तो लेते तुम्हारा साथ मगर

मिलेंगे राह में इक दिन किसी बहाने से


हमारे प्यार का तुम इम्तेहान मत लेना

पड़ा जो वक्त तो लड़ जाएंगे ज़माने से ।

Saturday, May 30, 2009

छुपचुप के निगाहों का इशारा नहीं करते...




कांटो को मोहब्बत का इशारा नहीं करते
एक बार जो करते हैं दुबारा नहीं करते



वो रंग जो उल्फत की किताबों से परे हैं
उस रंग को हम दिल में उतारा नहीं करते

चुपचाप से रो लेते हैं हम याद में तेरी
पर नाम तेरा लेके पुकारा नहीं करते

इन रेशमी ज़ुल्फ़ों में बसी है मेरी दुनिया
यूंही तेरी ज़ुल्फ़ों को संवारा नहीं करते

जीने के लिए यादों का दाना ही बहोत है
हम झूठ के टुकड़ों पे गुज़ारा नहीं करते

वो लोग जो खुद्दार हैं मर जाते हैं लेकिन
ज़िल्लत में मिली उम्र गवारा नहीं करते


मसरूर

Friday, May 29, 2009

आसमां हो के भी ज़र्रे से मोहब्बत की है


मेरे महबूब बता कैसी इनायत की है
आसमां हो के भी ज़र्रे से मोहब्बत की है


कल वो चाहत का मेरी खूब उड़ाएंगे मज़ाक
मेरी तकदीर ने ये कैसी शरारत की है

मैं बदल जाउं तो लगता है कि मर जाउंगा
मैं न बदलूं तो वो समझेंगे बग़ावत की है

लोग दुनिया में तो मिट्टी के खुदा पूजते हैं
मैंने ख्वाबों में भी बस उसकी इबादत की है


मसरुर

Monday, May 25, 2009

अच्छी सूरत को संवरने की ज़रूरत क्या है, सादगी में भी क़यामत की अदा होती है


तू आसमां है चांद सितारों से पूछ ले

दुनिया के इन हसीन नज़ारों से पूछ ले


तुझको मैं रब कहूं तो बुरा मानते हैं लोग
तू मेरे दिल की बात इशारों से पूछ ले

तुझमें ही डूबने को बना है मेरा वजूद
दरिया से शर्म है तो किनारों से पूछ ले

डाली मेरे चमन की भी भीगी हुई सी है
सावन की हल्की हल्की फुहारों से पूछ ले

बेरंग सी हुई हैं फिज़ाएं तेरे बगैर
मेरा यकीं नहीं तो बहारों से पूछ ले


मसरूर अब्बास

Friday, May 1, 2009

तू मुझमें ही है फिर दिखता क्यों नहीं...?


मुझसे नालां हैं मेरे चाहने वाले या रब
मैं परेशान हूं अब मुझको बचा ले या रब

कौन सी राह पे बहंका सा चला आया हूं
तू सही राह मुझे आ के दिखा दे या रब

इस ज़माने का हर एक रंग तेरे रंग से है
मेरी दुनिया को भी रौशन सा बना दे या रब

तू ही लिखता है मुकद्दर की किताबें सब की
मेरी बिगड़ी हुई तकदीर बना दे या रब

रौशनी साथ है पर फिर भी अंधेरा है यहां
मेरी दुनिया के अंधेरों को मिटा दे या रब

हम कहां फैसला लेने का हुनर रखते हैं
मेरी मंज़िल से मुझे आ के मिला दे या रब

इस ज़माने को तैरे होने का एहसास नहीं
अपने चेहरे से ज़रा पर्दा उठा दे या रब
मसरूर अब्बास

Wednesday, April 29, 2009

दुआ यही है तुझी को तमाम उम्र पढ़ूं, हथेलियों पे तेरा नाम लिख के रक्खा है !!!





भंवरे तेरे आने की खबर पूछ रहे हैं
आना तो मोहब्बत का शहद साथ में लाना
उनको भी तेरे हुस्न की आदत सी हुई है
वो भी तेरी ज़ुल्फों के गिरफ्तार हुए हैं

बाग़ों के परिंदों को भी है तेरी तमन्ना
वो भी तेरे आने की खबर पूछ रहे हैं
उनको भी तेरी आंखों के तीरों की खबर
चुपचाप से बैठे हैं इन्हें जान डर है

वो रात में दिखते हैं जो जुगनू कई सारे
वो भी तरे चेहरे उजालों से हैं रौशन
उनको भी तेरे नूर की आदत सी हुई है
घुटनों पे खड़े हैं तेरे आने की खबर है

सन्नाटा अपाहिज सा परेशान बहोत है
गलियां तेरे उम्मीद में वीरान बहोत हैं
अब इनको बचा लो कि इन्हें तुमसे है राहत
तुमसे जो हुई बस उसी तकरार का डर है


खेतों में सुनहरी सी पड़ी बालियां सारी
इस आस में बैठी हैं कि गुज़रोगे कभी तुम
पक जाएंगी वो मरमरी आवाज़ को सुनके
आंखों से बचा लो इन्हें बरसात का डर है

आहिस्ता चलो पैरों की झनकार तुम्हारे
कानों को मेरे आज भी बेचैन करे है
मैं आस लागाए हुए बैठा हूं कभी से
तुम मुझको बचा लो मुझे अंजाम का डर है


मसरुर अब्बास