अरे हुजूर! मुगलसराय मत बोलिए।
तो चलिए अब मेन्यू में थोड़ा बदलाव कर लीजिए। ये मुगलई कोरमा हटाकर दीनदयाल कोरमा कर लीजिए। बल्कि एक काम कीजिए! कोफ्ता, निहारी, मुर्ग मुसल्लम, चाप इन सबके आगे एक्के बार में दीनदयाल लगा लीजिए। अब ज़ाएका कितना बढ़ेगा ई तो नहीं पता हां खाने वाले की अंतड़ियां तक देश भक्ति के इमोशन में डूब जाएंगी, ई बात की पूरी गैरेंटी है। ऊ का है ना ई छोटुआ का आइडिया है। छोटुआ रॉन्ग थोड़े ना होता है। ई पंडितों से बड़ा पंडित ज्ञानियों से बड़ा ज्ञानी है। नोट बंदी के समय छोटुआ कहे रहा कि ईकोनोमिस्ट का बतांगे कि ईका कितना फायदा होने वाला है। ई मर्ज़ नहीं मरीज खतम करने वाला डॉक्टर है। मगर आप अब भी नहीं मानेंगे कि ई रॉन्ग नंबर है, आपकी असली फिरकी ई ले रहा है और आप लुल्ल बने बैठै हैं।
वर्ना सोचिए दिल्ली से लेकर बिहार तक, मुंबई से लेकर दरभंगा तक ऐसी कोई ट्रेन ना मिलेगी जिसकी चाय पीकर आप तर जाएं। जिसका खाना खाकर आप सेर हो जाएंग। अमा खाना तो छोड़िए, इस बात की गैरेंटी दे सकता हूं कि दौड़ती ट्रेन पर मिलने वाला हर सामान शुद्धता की कसौटी के सबसे निचले मानकों पर भी खरा नहीं उतर पाएगा। चाय तो दूर आप ट्रेन पर मिलने वाला पानी तक पीने से पहले सौ बार सोचा करिए। टॉयलेट का दर्द तो खैर आपने भी खूब महसूस किया होगा। गंदगी से बजबजाते ट्रेनों के शौचालय पर छोटुआ की नजर नहीं जाती। हां तो विकास रथ पर सवार विकास पुरुष ने इस बार विकास की जो नई लकीर खींची है वो मुगल सराय से शुरु हुई है। एशिया के सबसे बड़े रेलवे मार्शलिंग यार्ड और भारतीय रेलवे का ‘क्लास ए स्टेशन’ अब मुगलसराय नहीं पंडित दीन दयाल स्टेशन नाम से जाना जाएगा। ये वो स्टेशन है जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाता है। खैर भारत की ऐतिहासिक धरोहरों के साथ खिलवाड़ का ये जो नया चलन चला है ये तो तभी शुरु हो गया था जब अकबर रोड का नाम बदला गया था। अब इसकी आदत डाल लीजिए क्योंकि मुमकिन है आने वाले समय में आपको सिक्के पर छोटुआ की फोटू मिले और आपको उसे महात्मा कह रटाया जाए। इसमें दोष छोटुआ का नहीं है..दोष तो आपकी लुल्ल बुद्धि का है, जो तब सो जाती है जब इसे जागना होता है।